Thursday, August 18, 2011

मुसाफिर हूं यारों... (परिचय)

विशेष नोट : यह गीत हमेशा से मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में रहा है, जिसके दो कारण हैं... एक, यह मेरे पसंदीदा पार्श्वगायक की आवाज़ में है, और दूसरी वजह इसके रचयिता गुलज़ार हैं, जिनका शायद ही कोई गीत होगा, जो मुझे पसंद न आया हो... सो, आज उनकी 75वीं वर्षगांठ पर उनका लिखा यह गीत आप सबके लिए...


फिल्म : परिचय (1972)
संगीतकार : राहुल देव बर्मन (आरडी बर्मन, पंचम)
गीतकार : गुलज़ार (सम्पूरण सिंह कालरा)
पार्श्वगायक : किशोर कुमार

मुसाफिर हूं यारों...
न घर है, न ठिकाना...
मुझे चलते जाना है... बस, चलते जाना...

एक राह रुक गई, तो और जुड़ गई...
मैं मुड़ा तो साथ-साथ, राह मुड़ गई...
हवा के परों पर, मेरा आशियाना...
मुसाफिर हूं यारों...
न घर है, न ठिकाना...
मुझे चलते जाना है... बस, चलते जाना...

दिन ने हाथ थामकर, इधर बिठा लिया...
रात ने इशारे से, उधर बुला लिया...
सुबह से, शाम से, मेरा दोस्ताना...
मुसाफिर हूं यारों...
न घर है, न ठिकाना...
मुझे चलते जाना है... बस, चलते जाना...

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