Thursday, January 27, 2011

सुपरमैन हैं मेरे पापा... (वि‍वेक भटनागर)

विशेष नोट : यह युवा कवि‍ एवं पत्रकार वि‍वेक भटनागर द्वारा रचित बाल कवि‍ता है, जो अचानक ही इंटरनेट पर दिख गई, और अच्छी लगी, सो, आप लोग भी इसका आनंद लें...

 

सुपरमैन हैं मेरे पापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...

अक्सर चीतों से भिड़ जाते...
शेरों से भी न घबराते...
भालू से कुश्ती में जीते...
हाथी तक का दिल दहलाते...
मगरमच्छ का जबड़ा नापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...

भूत-प्रेत भी उनसे डरते...
सारे उनकी सेवा करते...
सभी चुड़ैलें झाड़ू देतीं...
सारे राक्षस पानी भरते...
उनमें पापा का डर व्यापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...

आसमान तक सीढ़ी रखते...
खूब दूर तक चढ़ते जाते...
इंद्रलोक में जाकर वह तो...
इंद्रदेव से हाथ मिलाते...
उनसे डर इंद्रासन कांपा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...

वि‍वेक भटनागर जी की इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद मेरी फेसबुक मित्र, आदरणीय शरद जोशी जी की पुत्री तथा टीवी अभिनेत्री नेहा शरद ने इस कविता में कुछ जोड़ा, सो, वह भी प्रस्तुत है...

सुपरमैन हैं मेरे पापा...
मम्मी से थोड़ा घबराते...
उनको देख-देख हकलाते...
सिर झुकाकर ऐसे रहते,
जैसे मम्मी से शरमाते...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...

4 comments:

  1. बहुत अच्छी लगी आपकी कविता .....और ब्लोग भी

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    1. वन्दना जी, जहां तक कविता की प्रशंसा की बात है, कवि श्री विवेक भटनागर जी से भले ही मेरा परिचय नहीं है, परन्तु उनकी कविता को अपने ब्लॉग पर लगाया है तो उनकी ओर से धन्यवाद देना मेरा ही उत्तरदायित्व है...

      और हां, ब्लॉग की प्रशंसा के लिए भी मेरी ओर से हार्दिक आभार... :-)

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  2. विवेक जी, आपने मेरी ओर से धन्यवाद दिया, इसके लिए आभार...। भले ही हम एक दूसरे को न जानते हों, लेकिन आखिर नाम तो हम दोनों का एक ही है...। अपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए भी आभार...

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    1. आभार आपका, विवेक भाई... आपने और आप जैसे अन्य रचयिताओं ने कविताएं न लिखी होतीं तो मेरे ब्लॉग पर स्तरीय सामग्री आती कहां से... आपकी कविता सचमुच अच्छी लगी, इसीलिए यहां प्रकाशित की... आप स्वयं इस ब्लॉग पर देख सकते हैं, मेरी पसंद बहुत सीमित दायरे में रहती है, वरना प्रकाशित करने के लिए इंटरनेट पर बहुत कुछ उपलब्ध है...

      सो, अच्छी और बच्चों को पसंद आने वाली रचना गढ़ने के लिए आपका धन्यवाद... कलम इसी तरह चलाते रहिए... :-)

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