Wednesday, April 07, 2010

मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी... (बालकृष्ण गर्ग)

विशेष नोट : इंटरनेट पर एक बेहद पसंदीदा कविता ढूंढने की कोशिश में श्री बालकृष्ण गर्ग द्वारा रचित यह कविता मिल गई... कुछ साथियों की फरमाइश थी एक हास्य कविता की, सो, लीजिए, पढिए...

मैं पीला-पीला-सा प्रकाश, तू भकाभक्क दिन-सा उजास...
मैं आम पीलिया का मरीज़, तू गोरी-चिट्टी मेम खास...
मैं खर-पतवार अवांछित-सा, तू पूजा की है दूब सखी, मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी...

तेरी-मेरी न समता कुछ, तेरे आगे न जमता कुछ...
मैं तो साधारण-सा लट्टू, मुझमें ज़्यादा न क्षमता कुछ...
तेरी तो दीवानी दुनिया, मुझसे सब जाते ऊब सखी, मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी...

कम वोल्टेज में तू न जले, तब ही मेरी कुछ दाल गले...
वरना मेरी है पूछ कहां, हर जगह तुझे ही मान मिले...
हूं साइज़ में भी मैं हेठा, तेरी हाइट क्या खूब सखी, मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी...

बिजली का तेरा खर्चा कम, लेकिन लाइट में कितना दम...
सोणिये, इलेक्शन बिना लड़े ही, जीत जाए तू खुदा कसम...
नैया मेरी मंझधार पड़ी, लगता जाएगी डूब सखी, मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी...

तू महंगी है, मैं सस्ता हूं, तू चांदी तो मैं जस्ता हूं...
इठलाती है तू अपने पर, लेकिन मैं खुद पर हंसता हूं...
मैं कभी नहीं बन पाऊंगा, तेरे दिल का महबूब सखी, मैं बल्ब और तू ट्यूब, सखी...

2 comments:

  1. क्या बात है.......मज़ा आ गया .........
    दिल को गुदगुदाने वाली रोचक
    कविता है आपकी

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  2. ऐना, यह सचमुच अच्छी कविता है... परंतु बताना चाहूंगा, मेरी लिखी नहीं है, जैसा कि ऊपर कविता के परिचय में भी उल्लिखित है... :-)

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