Thursday, December 31, 2009

कुछ ऐसा हो, साल नए में... (विवेक रस्तोगी)

विशेष नोट : अभी-अभी बैठे-बैठे सूझा, बहुत समय से कुछ नहीं लिखा है, सो, एक कोशिश करता हूं... जो बन पाया, आपके सामने है...

हो साल नया, पर काल वही है,
वही हैं हम, और चाल वही है...
देश वही है, वही है मिट्टी,
पत्ते-पौधे, छाल वही है...

वही हैं खुशियां, ग़म वैसे ही,
शोक और उन्माद वही है...
कितना ही, कोई भी रोके,
मौन वही, संवाद वही है...

कुछ ऐसा हो, साल नए में,
मुझको बदले, बेहतर कर दे...
सबको सब कुछ देता जाऊं,
पाऊं कुछ तब, ऐसा वर दे...

3 comments:

  1. वाह...वाह...वाह..
    क्या बात है विवेक भैया
    बहुत खूब
    आपका एक और रंग भी देखकर आनंदित हूँ !

    अत्यंत सुन्दर ..सशक्त और सार्थक रचना के माध्य्यम से
    आपने नए साल का स्वागत किया है !
    पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत है :
    कुछ ऐसा हो, साल नए में,
    मुझको बदले, बेहतर कर दे...
    सबको सब कुछ देता जाऊं,
    पाऊं कुछ तब, ऐसा वर दे.


    आपको भी नए वर्ष की हार्दिक बधाई
    आशा है नया साल आपके रचनात्मक संकल्पों को
    पूरा करने वाला सिद्ध होगा !
    शुभ कामनाएं

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  2. it's vey well written.PLease keep on writing your thoughts

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  3. प्रशंसा के शब्दों और शुभकामनाओं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रकाश और मुकेश भाई...

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