Thursday, December 03, 2009

खिलौनेवाला (सुभद्राकुमारी चौहान)

विशेष नोट : हाल ही में मेरी मौसी मेरे बेटे को कुछ कविताएं सिखा रही थीं, सो, अपनी पढ़ी कुछ कविताएं याद हो आईं... सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता उन्हीं में से एक है...

वह देखो मां आज, खिलौनेवाला फिर से आया है...
कई तरह के सुंदर-सुंदर, नए खिलौने लाया है...

हरा-हरा तोता पिंजरे में, गेंद एक पैसे वाली...
छोटी-सी मोटर गाड़ी है, सर-सर-सर चलने वाली...

सीटी भी है कई तरह की, कई तरह के सुंदर खेल...
चाभी भर देने से, भक-भक करती, चलने वाली रेल...

गुड़िया भी है बहुत भली-सी, पहने कानों में बाली...
छोटा-सा 'टी सेट' है, छोटे-छोटे हैं लोटा-थाली...

छोटे-छोटे धनुष-बाण हैं, हैं छोटी-छोटी तलवार...
नए खिलौने ले लो भैया, ज़ोर-ज़ोर वह रहा पुकार...

मुन्‍नू ने गुड़िया ले ली है, मोहन ने मोटरगाड़ी...
मचल-मचल सरला करती है, मां से लेने को साड़ी...

कभी खिलौनेवाला भी मां, क्‍या साड़ी ले आता है...
साड़ी तो वह कपड़े वाला, कभी-कभी दे जाता है...

अम्‍मा तुमने तो लाकर के, मुझे दे दिए पैसे चार...
कौन खिलौने लेता हूं मैं, तुम भी मन में करो विचार...

तुम सोचोगी मैं ले लूंगा, तोता, बिल्‍ली, मोटर, रेल...
पर मां, यह मैं कभी न लूंगा, ये तो हैं बच्‍चों के खेल...

मैं तो तलवार खरीदूंगा मां, या मैं लूंगा तीर-कमान...
जंगल में जा, किसी ताड़का, को मारूंगा राम समान...

तपसी यज्ञ करेंगे, असुरों को, मैं मार भगाऊंगा...
यों ही कुछ दिन करते-करते रामचंद्र बन जाऊंगा...

यही रहूंगा, कौशल्‍या मैं तुमको, यहीं बनाऊंगा...
तुम कह दोगी वन जाने को, हंसते-हंसते जाऊंगा...

पर मां, बिना तुम्‍हारे वन में, मैं कैसे रह पाऊंगा...
दिन भर घूमूंगा जंगल में, लौट कहां पर आऊंगा...

किससे लूंगा पैसे, रूठूंगा तो कौन मना लेगा...
कौन प्‍यार से बिठा गोद में, मनचाही चींज़ें देगा...

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