Wednesday, December 02, 2009

कौन सिखाता है चिड़ियों को... (द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)

विशेष नोट : हाल ही में मेरी मौसी मेरे बेटे को कुछ कविताएं सिखा रही थीं, सो, अपनी पढ़ी कुछ कविताएं याद हो आईं... द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित यह कविता उन्हीं में से एक है...

कौन सिखाता है चिड़ियों को, चीं-चीं, चीं-चीं करना...?
कौन सिखाता फुदक-फुदककर, उनको चलना-फिरना...?

कौन सिखाता फुर से उड़ना, दाने चुग-चुग खाना...?
कौन सिखाता तिनके ला-लाकर घोंसले बनाना...?

कौन सिखाता है बच्चों का, लालन-पालन उनको...?
मां का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको...?

कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती...
किन्तु नहीं बदले में हमसे, वह कुछ भी है लेती...

हम सब उसके अंश कि जैसे तरु-पशु–पक्षी सारे...
हम सब उसके वंशज, जैसे सूरज-चांद-सितारे...

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