Friday, July 17, 2009

प्रियतमे विषाद का स्वर है यह... (राम अवतार रस्तोगी 'शैल')

विशेष नोट : अधिकतर बच्चों की तरह मेरे आदर्श भी मेरे पिता ही रहे हैं... सरकारी नौकरी छोड़कर मेरे पत्रकार बन जाने की एकमात्र वजह भी यही थी कि वह पत्रकार थे... अपने कॉलेज के समय में वह कविता भी किया करते थे, सो, आज उनकी डायरी से एक कविता आप सबके लिए प्रस्तुत कर रहा हूं... यह कविता उनकी डायरी के मुताबिक 28 जनवरी, 1964 को लिखी गई, जब वे एमए में पढ़ते थे...

प्रियतमे विषाद का स्वर है यह,
इसमें तुम खोज सकोगी क्या...?
निःश्वास भरा इसमें साथिन,
तब पा तुम प्यार सकोगी क्या...?

दुःखमय नीरव तानें इसकी,
उनको तुम खैंच सकोगी क्या...?
जो फिर स्वर से अभिप्रेतनीय,
उसको तुम भांप सकोगी क्या...?

मेरे स्वर में जो कातरता,
उसको दे धीर सकोगी क्या...?
नैराश्य भरा जो इस स्वर में,
उसकी हर पीर सकोगी क्या...?

मेरे श्वासों में क्रन्दन है,
उसको दे धैर्य सकोगी क्या...?
मेरे यौवन में सूनापन,
उसका दे साथ सकोगी क्या...?

कम्पन जो स्वर के अन्तस में,
उसको तुम बांध सकोगी क्या...?
अन्तर जो अन्तर्द्वद्वों में,
उसको तुम पाट सकोगी क्या...?

प्रियतमे विषाद का स्वर है यह,
इसमें तुम खोज सकोगी क्या...?

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